Friday, December 22, 2023

राजा और उसके घोड़े की कहानी

बहुत वर्ष पहले की बात है, भारतवर्ष भूमि पर बादामपुर नाम का एक गांव हुआ करता था |

बादामपुर के राजा काफी वीर और शक्तिशाली थे और उनके पास पूरे विश्व में सबसे बेहतरीन घोड़ों की सेना भी थी |

इसी सेना में राजा का सबसे वफादार और युद्ध कौशल में निपुण एक घोडा था - भूरी |

राजा ने घोड़े को युद्ध में ले जाना बंद कर दिया |

भूरी हर युद्ध में राजा का साथ देता और राजा को जीत भी दिलाता था, और तो और युद्ध लड़ते समय भूरी को कई बार तीर भी लगे लेकिन फिर भी वह पूरे साहस के साथ युद्धभूमि में लड़ता रहता |

एक बार राजा ने सोचा कि कितना निर्दयी है वो जो भूरी जैसे साहसी घोड़े को चोटिल होने के बावजूद उस को बार-बार युद्ध में ले जाता रहता है | भूरी शक्तिशाली है और वफादार भी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह उसको इतना उपयोग में ले |

इसी सोच के साथ राजा ने अब भूरी को युद्ध में ले जाना बंद कर दिया और दो रखवाले भूरी की सेवा में लगा दिए |

यह रखवाले रोज भूरी को नहलाते, उसे अच्छा भोजन खिलाते, उसे सैर भी कराते |

भूरी ने अपने मन में सोचा कि राजा युद्ध पर तो जाते हैं पर मुझे नहीं ले जाते, हो सकता है वह मुझसे नाराज हैं |

यह सोच भूरी निराश ही रहता और समय व्यतीत करने के लिए इधर-उधर टहलता और घास चरता रहता |

एक दिन भूरी के दोनों रखवाले उसे अकेला छोड़कर चौसर खेलने चले गए जिस के कारण भूरी घास चरते-चरते काफी आगे निकल गया और तालाब के पास की घास को चरने लगा |

घास चरते-चरते पता नहीं कब भूरी का पैर एक दलदल में फंस गया, जैसे ही भूरी ने पैर निकालने की कोशिश की तो वह और भी भीतर धंसने लगा |

खुद को दलदल में फंसता देख भूरी अब जोर-जोर से हुंकारने लगा और मदद के लिए आसपास के राहगीरों को बुलाने लगा |

दलदल में एक घोड़े को फंसा देखकर तालाब के पास कपडे धो रहे कुछ धोबी उस के पास आये और उसे निकालने की काफी कोशिश भी की लेकिन उसे निकाल नहीं सके |

चौसर की एक पारी खत्म होने के बाद भूरी के रखवालों का ध्यान गया कि भूरी तो उनके आसपास है ही नहीं |

राजा के दंड के डर से दोनों रखवाले भूरी को खोजने निकले और थोड़ी ही दूर जाने पर पाया कि वह तो एक दलदल में फँस गया है |

दोनों रखवालों ने घोड़े को निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन उनके हाथ कामयाबी नहीं लगी | 

जब बाकि लोगों ने देखा कि राजा के आदमी इस घोड़े को निकाल रहे हैं तो वह समझ गए कि यह राजा का घोडा है | 

फिर क्या था लोगों ने यह खबर पूरे इलाके में फैला दी जिस से यह बात राजा को भी पता चल गयी कि उसका  घोडा भूरी एक दलदल में फँस गया है | 

राजा तुरंत अपने घोड़े को बचाने के लिए तालाब के पास उस दलदल वाली जगह पर पहुँचा और अपने घोड़े को निकालने की कोशिश  की लेकिन उसे भी कामयाबी हाथ नहीं लगी | 

राजा बहुत दुखी हो गया और उसने अपने सभी मंत्रियों को उसी जगह बुलवा लिया और उन सभी से घोड़े को दलदल से निकालने का उपाय खोजने के लिए कहा |

सभी मंत्रियों ने अपनी-अपनी राय राजा के सामने रखी जिस के बाद राजा ने कभी हाथी की सहायता से घोड़े को खिंचवाया तो बैल की सहायता से लेकिन फिर भी घोडा दलदल से बाहर नहीं निकल सका |

सभी मंत्रियों के सुझाव और रायों पर अमल होने के बाद राजा के मंत्रिमंडल के सबसे बुजुर्ग एक मंत्री ने राजा को बताया कि इस घोड़े को कोई भी इस दलदल से बाहर नहीं निकाल सकता किन्तु यह घोडा ही खुद को इस दलदल से बाहर निकालेगा |

बुजुर्ग मंत्री ने राजा से कहा कि अपने राज्य के युद्ध के नगाड़े बजाने वालों को बुलाकर युद्ध के नगाड़े बजवाये जाएँ और आसपास तलवारबाजी शुरू करवाकर युद्ध जैसा माहौल बनाया जाए जिस से यह घोडा अपने आप बाहर आ जायेगा |

राजा ने बुजुर्ग मंत्री की सलाह पर ढोल-नगाड़े बजवा दिए और तलवारबाजी भी शुरू करवा दी |

देखते ही देखते उस घोड़े में अद्भुत शक्ति आ गयी और वह तेज उछाल के साथ एक ही झटके में दलदल के बाहर आ गया और ढोल नगाड़े के इर्द-गिर्द तेज-तेज दौड़ने लगा |

घोड़े को इस प्रकार से दलदल से बाहर निकलते देख राजा और बाकि सभी लोग आश्चर्यचकित हो उठे |

राजा ने जब बुजुर्ग मंत्री से इस सब का कारण पूछा तो उसने बताया कि यह घोडा तो युद्ध भूमि के लिए बना हुआ है, आपने इसको युद्ध में ना ले कर इसकी देखभाल करवाई जिस के कारण इसका मन दुखी हो गया लेकिन जब इस घोड़े के इर्द-गिर्द युद्ध के ढोल बजाए गए तो इसे अपने पुराने दिन याद आ गए कि कैसे यह युद्ध में हर चुनौती का सामना किया करता था | 

यह सब सुन राजा की आँखें भर आयीं और और उसने वापस से उसी घोड़े को युद्ध में ले जाना शुरू कर दिया और वह सदैव विजयी रहा |

शिक्षा- हमें अपने जीवन में उत्साह और कार्यक्षमता को कभी नहीं खोना चाहिए व सदैव अपने गुणों को निखारते रहना चाहिए |

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