नेताजी का चश्मा
नमस्कार ,मित्रों आज हम जानेंगे लोगों की देशभक्ति के बारे में कि कैसे लोग अपनी देश भक्ति को प्रकट करते हैं |"नेताजी का चश्मा "एक बहुत ही बढ़िया कहानी है |
ये कहानी हिंदी साहित्य के महान लेखक 'श्री स्वयं प्रकाश जी' द्वारा लिखी गई है |
एक छोटा -सा कस्बा जहाँ सिर्फ कुछ ही घर थे जो कि पक्के मकान थे ,एक लड़कों का और एक लड़कियों का स्कूल ,एक छोटा सा सीमेंट का कारखाना और एक बढ़िया-सी नगर पालिका |
नगर पालिका शहर में कोई न कोई काम कराती ही रहती थी |कभी सफाई करवा दी, कभी कबूतरों की छत्री बनवा दी तो कभी कोई मूर्ति तो कभी कुछ और,लोग नगर पालिका के काम से बहुत ही ज्यादा खुश थे |
एक बार नगर पालिका ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की संगमरमर की मूर्ति बनवा दी वो भी बाजार के बीचों-बीच एक चौराहे पर,अब बजट कम था तो मूर्ति बनाने के कार्य को स्थाननीय स्कूल के ही ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को दे दिया था जिन्होनें बना दी बजट मुताबिक एक सुन्दर-सी नेताजी की मूर्ति जिस पर हर कुछ दिन बाद माल्यापर्ण होता ही रहता था |
हालदार साहब बहुत ही व्यस्त आदमी थे उनका हर पंद्रह दिन बाद उस कस्बे से गुजरना होता था और जब भी वह उस कस्बे के उस चौराहे से निकलते तो वहां की पान की दूकान से पान खाने जरुर रुकते थे |
एक दिन पान खाते हुए हालदार साहब की नजर उस मूर्ति पर पड़ी |मूर्ति देखकर वे मुस्कुराये और फिर बोल उठे वाह ! क्या सुन्दर मूर्ति है नेताजी की ,उन्होंने मूर्ति को नतमस्तक किया फिर उनकी नजर एक जगह पर टिक गयी ,वह मुस्कुराए और बोले वाह !ये असली चश्मा एक अच्छे और सच्चे देश भक्ति के भाव को प्रकट करता है |
जिस आदमी ने यह बनायी है उस के कितने बड़े विचार होंगे |हालदार साहब उसी के बारे में सोचते रहे और फिर वहां से काम पर निकल पड़े |
अब हालदार साहब हर रोज वहां पान खाने के लिए रुकते पर एक चीज देखते कि हर रोज नेताजी की मूर्ति पर नया चश्मा होता, कभी कोई फ्रेम कभी कोई | बहुत ही दिनों तक यह ही चलता रहा पर जब हालदार साहब से रहा ना गया तो उन्होंने पान वाले से पूछ ही लिया कि इस मूर्ति पर हर रोज नया चश्मा कैसे ?
पान वाला एक काला,मोटा और खुशमिजाज आदमी था,उसके मुह में भी हमेशा पान रहता था |हालदार साहब के पूछने पर वह हँसने लगा और उसकी तोंद थिरकने लगी पर फिर उसने बताया कि यह सब वो चश्मे वाला कैप्टन करता है |
पहले हालदार साहब को समझ में नहीं आया पर बाद में आ गया कि एक कैप्टन नाम का आदमी है जो कि चश्मे बेचता है और वही चश्मे को बदलता है |
फिर हालदार साहब ने पूछा वे इन चश्मों को हर रोज क्यों बदलता है जिसपर पान वाले ने बताया कि वो नेताजी को चश्मा पहना देता है फिर जब भी कभी कोई ग्राहक वैसा ही फ्रेम मांगता है तो वह नेताजी से माफी मांग कर वो फ्रेम लेकर ग्राहक को दे देता है और फिर उनको नया फ्रेम वापस कर देता है,वो एक देश भक्त है जो कि नेताजी को बहुत मानता है |
अब क्या हालदार साहब उस पान वाले से पूछने लगे कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा कैसे नहीं फिर उस पान वाले ने हँसते हुए बताया कि चश्मा तो मूर्तिकार बनाना भूल गया |अभी भी हालदार साहब सोच रहे थे कि चश्मा क्यों नही बनाया होगा उस मूर्तिकार ने और पान वाले से पुछा जिस पर पान वाला फिर हँसा और बताया कि कैसे बजट कम होने की वजह से मूर्तिकार स्कूल के ही ड्राइंग मास्टर थे तो गलती तो होगी ही, फिर उन्होंने सोचा कि लोग उसे कैप्टन क्यों कहते होंगे यह सवाल हालदार साहब ने पान वाले से पुछा,उन्होंने कहा कि कहीं वह नेताजी का साथी तो नहीं था आजाद हिन्द फौज में जिस पर पान वाला बोला की वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में,वो तो पागल है पागल |
पान वाले की इस बात पर हालदार साहब को गुस्सा आया कि कोई कैसे एक सच्चे देशभक्त का मजाक उड़ा सकता है | बाद में ज्यादा सवाल करने पर पान वाले ने इशारा करते हुए कहा कि वो आ रहा है अब उस से ही बात करो मेरा समय जाया ना करें |
चश्मे वाला एक दुबला-पतला सा लंगड़ा आदमी था और देखने से वाकई में देशभक्त सा प्रतीत होता था, उस के पास एक संदूक और एक बांस से लटके हुए कुछ चश्मे थे जिन्हें वो मूर्ति के सहारे लगाकर बेचता था |
जिस आदमी ने यह बनायी है उस के कितने बड़े विचार होंगे |हालदार साहब उसी के बारे में सोचते रहे और फिर वहां से काम पर निकल पड़े |
अब हालदार साहब हर रोज वहां पान खाने के लिए रुकते पर एक चीज देखते कि हर रोज नेताजी की मूर्ति पर नया चश्मा होता, कभी कोई फ्रेम कभी कोई | बहुत ही दिनों तक यह ही चलता रहा पर जब हालदार साहब से रहा ना गया तो उन्होंने पान वाले से पूछ ही लिया कि इस मूर्ति पर हर रोज नया चश्मा कैसे ?
पान वाला एक काला,मोटा और खुशमिजाज आदमी था,उसके मुह में भी हमेशा पान रहता था |हालदार साहब के पूछने पर वह हँसने लगा और उसकी तोंद थिरकने लगी पर फिर उसने बताया कि यह सब वो चश्मे वाला कैप्टन करता है |
पहले हालदार साहब को समझ में नहीं आया पर बाद में आ गया कि एक कैप्टन नाम का आदमी है जो कि चश्मे बेचता है और वही चश्मे को बदलता है |
फिर हालदार साहब ने पूछा वे इन चश्मों को हर रोज क्यों बदलता है जिसपर पान वाले ने बताया कि वो नेताजी को चश्मा पहना देता है फिर जब भी कभी कोई ग्राहक वैसा ही फ्रेम मांगता है तो वह नेताजी से माफी मांग कर वो फ्रेम लेकर ग्राहक को दे देता है और फिर उनको नया फ्रेम वापस कर देता है,वो एक देश भक्त है जो कि नेताजी को बहुत मानता है |
अब क्या हालदार साहब उस पान वाले से पूछने लगे कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा कैसे नहीं फिर उस पान वाले ने हँसते हुए बताया कि चश्मा तो मूर्तिकार बनाना भूल गया |अभी भी हालदार साहब सोच रहे थे कि चश्मा क्यों नही बनाया होगा उस मूर्तिकार ने और पान वाले से पुछा जिस पर पान वाला फिर हँसा और बताया कि कैसे बजट कम होने की वजह से मूर्तिकार स्कूल के ही ड्राइंग मास्टर थे तो गलती तो होगी ही, फिर उन्होंने सोचा कि लोग उसे कैप्टन क्यों कहते होंगे यह सवाल हालदार साहब ने पान वाले से पुछा,उन्होंने कहा कि कहीं वह नेताजी का साथी तो नहीं था आजाद हिन्द फौज में जिस पर पान वाला बोला की वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में,वो तो पागल है पागल |
पान वाले की इस बात पर हालदार साहब को गुस्सा आया कि कोई कैसे एक सच्चे देशभक्त का मजाक उड़ा सकता है | बाद में ज्यादा सवाल करने पर पान वाले ने इशारा करते हुए कहा कि वो आ रहा है अब उस से ही बात करो मेरा समय जाया ना करें |
चश्मे वाला एक दुबला-पतला सा लंगड़ा आदमी था और देखने से वाकई में देशभक्त सा प्रतीत होता था, उस के पास एक संदूक और एक बांस से लटके हुए कुछ चश्मे थे जिन्हें वो मूर्ति के सहारे लगाकर बेचता था |
हालदार साहब को बहुत दुःख हुआ एक देशभक्त की ये हालत देखकर और फिर वह वहां से चले गए |
चले तो गए मगर वे मन में यही सोच रहे थे कि कैसे कुछ लोग बस माला चढ़ाकर दिखावटी देशभक्ति करते हैं और कैसे कुछ लोग चश्मे वाले की तरह सच्ची देशभक्ति जिसकी परवाह भी किसी को नहीं |
दो-तीन साल तक यही चलता रहा कि चश्मा बदलता रहा पर एक दिन पूरे बाजार में सन्नाटा था और नेताजी की मूर्ति पर चश्मा भी नहीं था,चार पांच दिन हो गए फिर भी चश्मा नहीं था |अब साहब ने पान वाले से कारण पूछ ही लिया तब उस पान वाले ने रोते हुए और अपने आंसू पौंछते हुए बताया कि अब चश्मे वाला कभी भी चश्मा नहीं बदल सकेगा | हालदार साहब दंग रह गए फिर वह पान के पैसे दे कर निकल पड़े |उनको बहुत ही दुःख हुआ कि ऐसे देश भक्त का यह क्या हुआ |अब ना तो मूर्ति पर चश्मा होता और ना ही हालदार साहब वहां ज्यादा रुकते बस पान लेकर चल देते |
comment jarur kareiye
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