माटी वाली
नमस्कार,मित्रों यह कहानी हमारे देश के सबसे ऊँचे बाँध से जुडी हुई है जिसमें इस बाँध के बनने से प्रकृति व लोगों को हुए नुकसानों को दर्शाया गया है |
यह कहानी विद्यासागर नौटियाल जी के द्वारा लिखी गयी है |
लोग आज भी नहीं भूले हैं कि कैसे पुराना टिहरी शहर पूरा जलमग्न हो गया था और किस प्रकार नया टिहरी शहर बसाया गया जिसके चलते कई गरीब लोगों को बेघर होना पड़ा था |
इस कहानी में ऐसे ही एक गरीब के बेघर होने की कहानी आप पढ़ेंगे |
तो चलिए जानते हैं कि कैसे माटी वाली से उसका सबकुछ छिन गया-
माटी वाली एक नाटे कद की हरिजन बुढ़िया,टिहरी शहर में शायद ही कोई ऐसा घर रहा होगा जिसे माटी वाली ना जानती हो या जहाँ उसे ना जानते हों |
माटी वाली स्वयं ही कई बरस से वहाँ के निवासी, किरायेदार, उनके बाल-बच्चे सभी के यहाँ घर-घर चूल्हे और दीवारों व फर्श की लिपाई-पुताई के लिए लाल मिट्टी देती आ रही है जिसका कोई भी प्रतिद्वंदी नहीं हुआ है |
अगर माटी वाली ना हो तो लोगों के घरों में चूल्हे तक जलना मुश्किल हो जाए क्यूंकि हर घर में खाना बनाने से पहले चूल्हे की साफ तरीके से लिपाई-पुताई जरुरी है |
शहर टिहरी जो कि तीन नदियों के बीच में बसा हुआ था उसके सेमल के तप्पड़ के मोहल्ले में बने आखिरी घर की खोली में पहुंचकर उसने दोनों हाथों की मदद से सर पर रखा माटी का कनस्तर उतारा |
माटी का कनस्तर जिसे हर कोई पहचानता हैं-रद्दी के कपडे को मोड़कर बनाये गए गोल डिल्ले के ऊपर लाल व चिकनी मिट्टी से छुलबुल भरा कनस्तर टिका रहता है जिसके ऊपर कभी कोई ढक्कन नहीं लगा होता क्यूंकि इस्तेमाल होने से पहले ही माटी वाली ऊपर के ढक्कन को काटकर फेंक देती थी जिस से उसे मिट्टी भरने और खलाने में आसानी रहती है |
माटी वाली ने कनस्तर नीचे रखा ही था कि इतने में एक नौ-दस साल की छोटी लड़की कामिनी माटी वाली के सामने पहुंची और बोली-
"मेरी माँ ने कहा है,जरा हमारे यहाँ भी आ जाना"
"हाँ,अभी आती हूँ" माटी वाली ने कहा |
घर की मालिकिन ने माटी को कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेल देने को कहा |
"तू बहुत भाग्यवान है चाय के टेम पर आयी है हमारे घर भाग्यवान आये खाते वक्त"
वह अपनी रसोई में गयी और दो रोटियां लेती आयी जिन्हें माटी वाली को सौंपकर वो फिर से अंदर चली गयी |
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में सोचने का समय नहीं था घर की मालिकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर-उधर तेज निगाहें दौड़ाई, हाँ इस समय वो अकेली थी और उसे कोई देख भी नहीं रहा था तो उसने फौरन ही अपने सर पर रखे डिल्ले के कपडे के मोड़ों को हड़बड़ी में एक ही झटके में खोला और उसे सीधा कर दिया फिर इकहरा खुल जाने के बाद वह एक पुरानी चादर के एक फटे हुए कपडे के रूप में प्रकट हुआ |
मालिकिन के बहार आँगन में निकलने से पहले उसने चुपके से अपने हाथ में थामी दो रोटियों में से एक रोटी को मोड़ा और उसे कपडे पर लपेटकर गाँठ बांड दी साथ ही अपना मुँह यों ही चलाने का दिखावा करने लगी तब तक घर की मालिकिन पीतल के एक गिलास में चाय लेकर लौटी और वह गिलास बुढ़िया के पास जमीन पर रख दिया |
"ले,सद्दा-बासी साग कुछ है नहीं अभी इस चाय के साथ ही निगल जा"
माटी वाली ने खुले कपडे के एक छोर से गोलाई में पकड़कर पीतल का वो गिलास उठाया और गरम चाय को ठंडा कर के रोटी चबाने के साथ पीने लगी |
"चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराइन"
"भूख तो अपने-आप में एक साग है बुढ़िया,भूख मीठी कि भोजन मीठा?"घर की मालिकिन ने कहा |
"तुम ने अभी तक पीतल के गिलास संभालकर रखे हैं,पूरे बाजार में अब और किसी के घर नहीं मिलते यह गिलास"माटी वाली ने कहा |
"इनके खरीददार कई बार हमारे घर के चक्कर काटकर लौट गए पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गयी चीज़ों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता हमे क्या मालुम कैसी तंगी के दिनों में अपनी जीभ पर कोई स्वादिष्ट व चटपटी चीज़ रखने के बजाये मन मसोसकर दो-दो पैसे जमा करते रहने के बाद खरीदी होंगी उन्होंने ये तमाम चीज़ें, जिनकी हमारे लोगों की नज़रों में अब कोई कीमत नहीं रह गयी है |
बाजार में जाकर पीतल का भाव पूछो जरा, सुनकर दिमाग चकराने लगता है, और यह व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इखट्टा कर ले जाते हैं,तमाम बर्तन-भांडे कांसे के बर्तन भी गायब हो गए हैं, सब घरों से |"
"इतनी लम्बी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहां या तो स्टील या कांच अथवा चीनी मिट्टी के भांडे ही दिखाई देते हैं |"माटी वाली ने कहा |
"अपनी चीज़ का मोह बहुत ही बुरा होता है, मैं तो सोचकर पागल हो जाती हूँ कि अब इस उम्र में हम इस शहर को छोड़कर जायेंगे कहाँ |"
"ठकुराइन जी, जो जमीन-जायदाद के मालिक हैं वो तो कहीं ना कहीं ठिकाने पर जायेंगे ही पर मैं सोचती हूँ मेरा क्या होगा ! मेरी तरफ देखने वाला तो कोई भी नहीं है |"
चाय खत्म कर माटी वाली ने एक हाथ में अपना कपडा उठाया,दूसरे में खाली कनस्तर और बहार निकलकर सामने के घर में चली गयी |
उस घर में भी 'कल हर हालात में माटी ले आने 'के आदेश के साथ उसे दो रोटियां मिल गयीं जिन्हें उसने अपने कपडे के एक दूसरे छोर में बाँध लिया लोग जानें तो जानें कि यह रोटियां वो अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है उसके घर पहुँचते ही अशक्त बुड्ढा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है,वह घर में रसोई बनने का इंतज़ार करने लगता है आज वह घर पहुंचते ही तीन रोटियां अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी जिसे देखकर उसका चेहरा खिल उठेगा |
साथ में ऐसा भी बोल देगी,"साग तो कुछ है नहीं अभी"
और तब उसे जवाब सुनाई देगा"भूख मीठी कि भोजन मीठा"
उसका गांव शहर के इतना पास भी नहीं है चाहें कितनी भी तेज़ कदम चलाओ एक घंटा तो लग ही जाता है रोज़ सुबह निकल जाती है वो अपने घर से माटाखान से माटी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक उसे ढोने में बीत जाता है तो घर पहुँचाने से पहले ही रात हो जाती है |
माटी वाली पर न कोई अपना खेत है न कोई जमीन का टुकड़ा वह तो एक झोंपड़ी में गुज़ारा करती है जो गांव के ही एक ठाकुर की जमीन पर खड़ी है जिसकी ऐवज में उसे ठाकुर के घर माटी देने के साथ ही कई और काम भी करने होते हैं |
नहीं,आज वह एक गठरी में बदल गए अपने बुड्ढे को कोरी रोटियां नहीं देगी बल्कि माटी बेचने से हुई आमदनी से एक पाव प्याज खरीद लिया जिसे कूटकर वह जल्दी-जल्दी तल लेगी और बुड्ढे को पहले रोटियां दिखाएगी ही नहीं सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियां अब वह दो रोटियां भी नहीं खा सकता एक ही रोटी खा पायेगा या हद से हद तक डेढ़ क्यूंकि अब उसे ज़्यादा पचता नहीं है बाकी डेढ़ रोटी माटी वाली खुद खा लेगी एक रोटी तो उसके पेट में पहले ही हो चुकी है ,मन में यह सब सोचती व हिसाब लगाती हुई माटी वाली अपने घर पहुंच गयी |
अब उसके बुड्ढे को रोटियों की कोई भी जरुरत नहीं रह गयी थी माटी वाली के पाऊँ की आहट सुनकर वह पहले की तरह चौंका नहीं उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाई,घबराई हुई माटी वाली ने उसे छू कर देखा पर वह अपनी माटी को छोड़कर जा चूका था |
टिहरी बाँध पुनर्वास के साहब ने उस से पुछा कि वह रहती कहाँ है ?
"तुम तहसील से अपने घर का प्रमाणपत्र ले आना |"साहब ने कहा |
"मेरी जिनगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुज़र गयी साब |"
"माटी कहाँ से लाती हो ?"
"माटाखान से लाती हूँ माटी"
"वह माटाखान चढ़ी है तेरे नाम ?अगर है तो हम नाम लिख देते हैं |"
"माटाखान तो मेरी रोज़ी-रोटी है साब |"
"बुढ़िया,हमें ज़मीन के कागज़ चाहिए रोज़ी के नहीं "
"बाँध बनने के बाद में क्या खाउंगी साहब ?"
"इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते वह बात तो तुझे खुद ही तय करनी पड़ेगी |
टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है ,शहर में पानी भरने लगा है व शहर में आपाधापी मची है शहरवासी अपने घरों को छोड़कर वहां से भागने लगे है पानी भर जाने से सब से पहले कुल शमशान घाट डूब गए हैं |
माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी है हरगां व के आने-जाने वाले से एक ही बात कहती जा रही है-"गरीब आदमी का शमशान नहीं उजड़ना चाहिए |"
Emotional and Heart-touching story in hindi.
ReplyDeleteThanks to CBSE and NCERT jo ye kahaani class 10 ke course me add kari.
Tehri ke bashindo par kya beeti hogi us samay yeh kahaani batlaati hai.
Kaisi thi tehri band pariyojana uska yeh pramaan hai.