अगर आप ने एक बार भी भगवद गीता पढ़ी है या आप महाभारत अथवा भगवद गीता का थोड़ा-सा भी ज्ञान रखते हैं तो आप यह अवश्य ही जानते होंगे कि इस युद्ध में कई प्रांतों और राज्यों के राजाओं ने भी भाग लिया था और उन सभी के तकरीबन 45 लाख सैनिकों ने भी अपने राजा और राज्य की तरफ से इसमें भाग लिया था |
पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन लाखों सैनिकों को खाना कहाँ से मिलता था ?
खैर, पुरानी कथाओं के अनुसार जब भी कोई राजा युद्ध में दूसरे राजा का साथ देने जाता था तो अपने साथ सेना तो जाहिर सी बात है ले ही जाता था परन्तु साथ में राशन का सामान भी ले जाता था ताकि दूसरी सेना की मदद भी हो सके और खुद के सैनिक भी पेट भरा हुआ होने के बाद ही मैदान में उतरें |
तो राशन तो युद्ध में शामिल होने वाले राजा अपने साथ लाये ही और तो और कौरव और पांडवों दोनों पर ही राशन की कोई कमी नहीं थी परन्तु कमी थी तो सिर्फ उस राशन से भोजन तैयार करने वाले की |
उडुपी(उडीपी) के राजा ने किया था प्रबंधन
दरअसल एक कथा के अनुसार जब उडुपी के राजा जो काफी दूरदर्शी थे,अपने सैनिकों के संग कुरुक्षेत्र पहुंचे तो देखा कि दोनों ही और से कई सारे राज्यों की सेना युद्ध के लिए आतुर थी, उन्हें सभी का विनाश साफ़-साफ़ दिख रहा था |
इस सब से चिंतित होकर वह स्वयं प्रभु श्री कृष्णा के पास पहुंचे और उनसे विनती की- "हे प्रभु ! इस सर्वनाशी युद्ध में हिस्सा लेने का मेरा बिलकुल भी मन नहीं, यहाँ तो सभी सेनाएं एक दूसरे से युद्ध करने के लिए आतुर हैं परन्तु क्या किसी ने सोचा है कि इतने सारे सैनिकों के भोजन आदि की व्यवस्था कैसे की जाएगी ? कृपया मुझे इन विशाल सेनाओं का भोजन प्रबंधन का कार्यभार सौंपा जाए |"
श्री कृष्णा भी यह जानते थे कि उडुपी नरेश से बेहतर प्रबंधन कोई और नहीं कर सकता इसलिए श्री कृष्ण ने उन्हें और उनके सैनिकों को भोजन प्रबंधन आदि का कार्यभार सौंप दिया |
युद्धआरम्भ से एक रात पहले उडुपी नरेश ने सारे सैनिकों और राजाओं के लिए इतना बढ़िया भोजन प्रबंध किया कि कोई भी उनकी तारीफ़ करते नहीं थका, और तो और उन्होंने जो भी भोजन बनाया उसमे से एक दाना भी व्यर्थ नहीं हुआ |
यही नहीं,युद्ध के दौरान एवं युद्ध के अंतिम दिन भी उडुपी नरेश द्वारा बनाये गए भोजन का एक तिनका भी व्यर्थ नहीं गया |
युधिष्ठिर का सवाल
अब युद्ध में हर दिन लाखों की तादाद में सैनिक मारे जाते जिनके शव कुरुक्षेत्र की विशाल युद्धभूमि में बिखरे पड़े रहते, अब ऐसे में रोज युद्धविराम के बाद इतने सारे सैनिकों को गिनना और बचे हुए सैनिकों का भोजन भी तैयार करना लगभग असंभव कार्य ही था फिर भी कभी भी सैनिकों को भोजन की कमी नहीं हुई और ना ही भोजन बर्बाद हुआ |
कौरव और पांडव दोनों ही उडुपी नरेश का यह कौशल देख आश्चर्यचकित रह जाते |
जब युद्ध समाप्त हो गया और युधिष्ठिर राजगद्दी पर आसीन हुए तो उन्होंने उडुपी नरेश से बड़ी ही उत्सुकता से पुछा-"मान्यवर, आपने हर रोज सभी सैनिकों के लिए भोजन तैयार किया और भोजन का एक तिनका भी व्यर्थ नहीं हुआ, इतने बड़े स्तर के युद्ध में भी आपने यह कैसे ज्ञात किया कि कितने सैनिक मर गए हैं और बाकी बचे कितने सैनिकों का भोजन बनेगा, आपने किस आधार पर भोजन की व्यवस्था करी ?"
उडुपी नरेश ने बताया भोजन प्रबंधन का रहस्य
उडुपी नरेश ने बताया कि इस सब का असली श्रेय स्वयं भगवान् श्री कृष्ण को जाता है, उनकी ही वजह से वह इतना बढ़िया भोजन प्रबंधन कर पाए |
उन्होंने बताया कि भगवान् श्री कृष्ण हर रोज भोजन के बाद उबली हुए मूंगफली के दाने खाते थे, तो मैं हर रोज गिनकर ही मूंगफली के दाने श्री कृष्ण को परोसता था, जितने दाने श्री कृष्ण खा लेते थे मैं समझ जाता था कि अगले दिन कितने सैनिको का खाना बनेगा |
यदि कृष्ण 30 मूंगफली के दाने खाते तो मैं उसे 1000 से गुना कर के पता लगा लेता कि अगले दिन 30000 सैनिक मारे जायेंगे और उसी क्रम में भोजन तैयार करता | बस यही कारण रहा कि भोजन का न ही एक भी दाना कम पड़ा और ना ही एक भी दाना व्यर्थ गया |
यह कहते हुए उन्होंने व बाकी सभी लोगों ने श्री कृष्ण के आगे झुककर उन्हें नतमस्तक किया |
उडुपी(उडीपी) राज्य कहाँ पर है ?
उडुपी(उडीपी), दक्षिण भारत के कर्नाटक में स्थित है और यहाँ पर मौजूद श्री कृष्ण मठ में आज भी यह कथा बड़ी ही उत्सुकता से सुनी और सुनाई जाती है | कहते हैं कि भगवान् श्री कृष्ण से प्रभावित होकर ही खुद उडुपी नरेश ने ही इस मठ की स्थापना की थी |
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