Thursday, November 10, 2022

Gautam Buddha aur Angulimaal | गौतम बुद्ध और डाँकू अंगुलिमाल

एक बार की बात है भगवान् गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ पदयात्रा कर रहे थे, रास्ते में जो भी गांव पड़ते थे वह वहाँ के लोगों को उपदेश भी देते थे | 

अंगुलिमाल डाकू  बुद्ध की कहानी

एक दिन वह मगध राज्य के जंगलों से होकर गुजर रहे थे और पास के गांव में उपदेश देने के लिए रुके, परन्तु ग्रामवासियों को उपदेश देते समय उन्होंने महसूस किया कि वहाँ के लोग काफी डरे-सहमे से रहते हैं और किसी कारणवश परेशान हैं |

जब उन्होंने गाँव के लोगों से इस डर का कारण पुछा तो उन्होंने बताया कि उनका गांव जंगल के समीप है जिस कारण उनका जीवन जंगल पर ही निर्भर है, वे लकड़ियों, चारे और व्यापार के लिए जंगल का ही प्रयोग करते हैं परन्तु एक अंगुलिमाल नाम का डाकू इसी जंगल में रहता है जो जंगल से निकलने वाले गांववाले और राहगीरों को मारकर उनकी ऊँगली स्मारक के तौर पर रख लेता है | 

इन उँगलियों की उसने एक माला भी बना ली है और वो दिन पर दिन और भी खूंखार होता जा रहा है |

*डाँकू अंगुलिमाल का नाम अंगुलिमाल कैसे पड़ा?

डाँकू अंगुलिमाल जिस किसी को भी मारता उसके हाथ की एक उंगली स्मारक के तौर पर अपने गले की माला में डाल लेता था ताकि उसने कितने लोगों को मारा इसका प्रमाण उसके पास हो | इसी के चलते उसको आसपास के गांवों के लोग अंगुलिमाल कह कर पुकारते थे | 

एक दूसरी कहानी यह भी है कि अंगुलिमाल के गुरु आचार्य मणिभद्र ने ही उसे अंगुलिमाल नाम दिया था और कहा था कि वह 1000 लोगों को मारकर उनकी उँगलियों की माला बना कर अपने गले में पहने |

गांववालों की पूरी बातें सुन-समझकर गौतम बुद्ध तुरंत प्रवचन स्थल से उठ कर जंगल की ओर चल दिए, गाँववालों और उनके शिष्यों ने उन्हें रोकने की खूब कोशिश भी की परन्तु वह नहीं रुके | 

बुद्ध के जंगल में थोड़ा आगे निकलते ही उनके शिष्य और गांववाले अंगुलिमाल के डर के कारण वहीँ रुक गए | 
अब सब पीछे छूठ गए थे परन्तु बुद्ध जंगल में बस चलते ही जा रहे थे कि इतने में पीछे से आवाज आई- " ठहर जा! "

बुद्ध समझ गए कि यह अंगुलिमाल की ही आवाज है परन्तु वह उसे अनदेखा करते हुए आगे ही चलते गए कि एक बार फिर से आवाज आई - " मुर्ख,सुना नहीं तूने ठहर जा! " 

अब बुद्ध रुक गए और पीछे मुड़कर देखा तो एक डरावना एवं खूँखार, राक्षसनुमा व्यक्ति खड़ा था, उसका शरीर बहुत लम्बा-चौड़ा था, उसके बाल भी बिखरे हुए और बहुत लंबे -लंबे और काले थे व उसके बड़े-बड़े नाखून थे |

उसके गले में उँगलियों की माला थी और एक हाथ में तलवार थी | उसकी आँखें भी एकदम सुर्ख लाल थीं जो गौतम बुद्ध को घूर रही थीं |

 परन्तु बुद्ध ने बिना डरे बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया- " मैं तो ठहर गया पर,तू कब ठहरेगा? "

अंगुलिमाल ने देखा कि उसको तो देखकर ही अच्छे-अच्छे लोग डर से काँपने लगते हैं पर बुद्ध निडर और निश्चिंत खड़े हुए थे |

यह सब देख वह बुद्ध से बोला- " हे संन्यासी ! तुझे जरा सा भी भय नहीं है क्या ? मुझे देखकर ही लोग अधमरे हो जाते हैं और तू है कि मुझसे नजरें मिला रहा है | "

बुद्ध ने जवाब दिया-" डरा तो उस से जाता है जो ताकतवर होता है! "

" लगता है तुझे मेरी ताकत का अंदाजा नहीं, मैं लोगों को एक वार में ही काट देता हूँ और उनकी उँगलियों को स्मारक के तौर पर भी रखता हूँ, दिख नहीं रही क्या यह उँगलियों माला तुझे ? " अंगुलिमाल ने कहा | 

* अंगुलिमाल भोले-भाले लोगों को क्यों मारता था ?

एक कहानी के अनुसार अंगुलिमाल को ज्ञान प्राप्त करना था जिसके लिए वह आचार्य मणिभद्र के पास गया |

वह बहुत ही भोला-भाला था और आचार्य मणिभद्र का आज्ञाकारी शिष्य था लेकिन एक दिन किसी कारणवश उसपर क्रोधित होकर आचार्य मणिभद्र ने उसे श्राप दे डाला कि उसे कभी भी ज्ञान प्राप्ति नहीं होगी |

यह सुन वह आचार्य के पैरों में पड़ गया और उनसे काफी गुहार लगाई कि इस श्राप का कोई निवारण बताएं |

इसके लिए उसके गुर आचार्य मणिभद्र ने उसे 1000 लोगों की हत्या करने के लिए कहा था मगर उनके साथ लूटपाट करने के लिए मना करा था |

उन्होंने कहा था कि जैसे ही वह 1000 लोगों की हत्या कर देगा, उसे ज्ञान प्राप्ति हो जाएगी |

अब 1000 लोगों की गिनती करने के लिए अंगुलिमाल उनकी उँगलियों को काटकर एक माला में डाल लेता था |

गौतम बुद्ध से मिलने से पहले ही वह 99 लोगों की हत्या कर चूका था लेकिन 100 वीं हत्या करने के लिए उसका बुद्ध से सामना हुआ और आचार्य मणिभद्र गुरु के बताये अनुसार गौतम बुद्ध उसे सही मार्ग पर ले आये और अपना शिष्य बना लिया एवं ज्ञान दिया |  

बुद्ध बोले- " ठीक है क्या तुम इस पेड़ से आठ पत्ती तोड़ सकते हो| "

बुद्ध के ऐसा कहते ही अंगुलिमाल ने एक ही झटके में पेड़ की टहनी नीचे गिरा दी और उसमें से आठ पत्तियां बुद्ध को दे दीं और बोला- " यह क्या ताकत का प्रदर्शन हुआ ,अगर तू कहे तो एक ही झटके में यह पेड़ गिरा दूँ! "

बुद्ध ने कहा- " अब इन पत्तियों और टहनी को को वापस इस पेड़ से जोड़ दो! "

" यह तो संभव ही नहीं! " अंगुलिमाल बोला |

" अब जब तुम वापस पत्तियों को पेड़ से नहीं जोड़ सकते तो तुम ताकतवर कैसे हुए! " बुद्ध ने कहा |

अंगुलिमाल आश्चर्य से बोला- " क्या,भला एक बार टूट जाने पर क्या यह पत्ते वापस पेड़ से जुड़ते हैं, किधर से शिक्षा लेकर आया है! "

*Angulimala and buddha story in hindi

"अगर हम किसी वास्तु को जोड़ नहीं सकते तो उसे तोड़ने का हमारे पास क्या अधिकार है " अर्थात " अगर तुम किसी व्यक्ति को वापस जीवित नहीं कर सकते तो तुम को उसे मारने का अधिकार कैसे प्राप्त हुआ, यह ताकत नहीं बल्कि तुम्हारा अहं है जो तुमसे यह सब पाप करवा रहा है! "

अंगुलिमाल मूक अवस्था में बुद्ध की ओर ताकता रहा, उसे अब अपनी गलती का अहसास हो गया था | 

उसने अपनी माला और तलवार दोनों ही एक ओर फेंक दी और बुद्ध के पांव पकड़ कर रोने लगा और अपने किये के लिए क्षमा मांगने लगा |

अब अंगुलिमाल एकदम बदल चुका था और वह आगे जाकर बहुत बड़ा साधू हुआ | 

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