Tuesday, May 16, 2023

खाटू श्याम बाबा की कहानी

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बहुत से भक्त खाटू श्याम बाबा की शरण में माथा टेकने जाते हैं और जो भी बाबा से सच्चे मन से प्रार्थना करता है बाबा उसकी अवश्य ही सुनते हैं |

खाटू श्याम मंदिर


बाबा का दरबार राजस्थान के सीकर जिले के एक कस्बे खाटू में स्थित है और यहाँ हर रोज हज़ारों की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं |

खाटू श्याम जी के श्रृंगार |

असल में यह मंदिर बर्बरीक का है जो महाभारत युद्ध के महान योद्धा थे |

मंदिर का इतिहास 


मान्यता है कि यह मंदिर हज़ारों साल पुराना है | एक बार खाटू नरेश को स्वप्न आया और खाटू श्याम जी ने उनके शीश के एक पहाड़ी पर दबे हुए होने की बात कही जिसके बाद खाटू नरेश ने खाटू श्याम मंदिर का निर्माण कराया और कार्तिक मास की एकादशी से वहां पूजा-अर्चना भी प्रारम्भ की | 

मूल मंदिर को सन 1027 में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कुंवर ने बनवाया था फिर सन 1720 में अभय सिंह जी ने इस मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था |

कौन हैं खाटू श्याम(बर्बरीक)


दरअसल बर्बरीक पांडव राजकुमार भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्यराज मूर की पुत्री मोरवी के सबसे बड़े पुत्र थे |वे बहुत ही महान योद्धा थे, उन्होंने युद्ध कौशल अपनी माता और स्वयं श्री कृष्णा से सीखा था | 

महाभारत युद्ध के दौरान उन्हें भगवान् श्री कृष्ण से वरदान मिला था कि कलयुग में उन्हें श्री कृष्ण जी के पर्यायवाची नाम 'श्याम' से पूजा जायेगा | यही नहीं जो भी भक्त सच्चे मन से उनका नाम जपेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी | 

खाटू श्याम बाबा का चिन्ह (निशान) 


अगर आप खाटू श्याम गए हैं या किसी गाडी के पीछे आपने "एक धनुष और तीन बाण (तीन बाण धारी)" का एक निशान जरूर देखा होगा जिसके नीचे "हारे का सहारा,बाबा श्याम हमारा" और आसपास "जय श्री श्याम" लिखा रहता है | 

दरअसल यह बाबा खाटू श्याम का चिन्ह(निशान) ही है और इसके पीछे भी एक रहस्य छिपा हुआ है | 
बचपन में ही खाटू श्याम जी ने भगवान् शिव की घोर तपस्या की थी जिस से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें तीन अमोघ बाण दिए जिनका निशाना कभी नहीं चूकता |

खाटू श्याम जी से सम्बंधित वस्तुएं |



इन अमोघ बाणों के स्वामी होने के कारण उन्हें 'तीन बाणधारी' नाम से भी पुकारा जाता है, और तो और दुर्गा माँ ने भी उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक धनुष भी दिया जो उनको तीनों लोकों में विजयी बनाएगा, जिससे वह रणभूमि में हमेशा विजयी ही रहेंगे यानी कोई भी उनको हरा नहीं सकता | 

खाटू श्याम की कहानी(बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कहानी)


|| हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा || 

इस पूरी कहानी का सार इस वाक्य में ही छिपा हुआ है | 

जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो सभी मित्र राज्यों के राजाओं और राजकुमारों को युद्ध में भाग लेने का निमंत्रण भेजा गया और स्वयं पांडव और कौरव राजकुमारों को भी युद्ध में हिस्सा लेने के लिए कहा गया इसलिए बर्बरीक भी नीले वस्त्र धारण कर अपने तीन बाण और एक धनुष को लेकर युद्धभूमि में पहुंचे |

अब जब बर्बरीक बिना सेना के सिर्फ तीन बाण और एक धनुष लेकर पहुंचे तो वहां मौजूद बाकी राज्यों के राजा और राजकुमार उन पर हँसने लगे | यह सब देख श्री कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर लिया और बर्बरीक के पास जाकर पूछा कि हे बालक तुम बस यह तीन बाण लिए कहाँ जा रहे हो, किस पक्ष की तरफ से लड़ोगे |

बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मैं भगवान् श्री कृष्ण को ढूंढ रहा हूँ और अपनी माँ को वचन देकर आया हूँ कि जो भी पक्ष हार रहा होगा मैं उसी की तरफ से युद्ध करूँगा |

श्री कृष्ण ने हँसते हुए पूछा कि तुम बस तीन बाणों से युद्ध में कैसे लड़ोगे तो बर्बरीक ने कहा कि यह तीन बाण ही काफी हैं पूरे युद्ध को खत्म करने के लिए | एक बार जब बाण इस धनुष से निकलता है तो लक्ष्य भेद देने के बाद ही वापस आता है | 

अगर यह तीनों बाण एक साथ चला दिए गए तो पूरे ब्रह्मांड का सर्वनाश हो जायेगा | 

श्री कृष्ण ने बर्बरीक का उपहास बनाते हुए कहा कि अगर तुम को अपने बाणों पर इतना ही भरोसा है तो इस पेड़ की सारी पत्तियों को अपने बाणों से भेद कर दिखाओ | 

बर्बरीक ने तुरंत भगवान शिव और अपने गुरु का स्मरण कर एक बाण अपने धनुष से छोड़ा और देखते ही देखते उस एक बाण ने पेड़ की सारी पत्तियां भेद डाली और फिर तीर ब्राह्मण के पैरों के आसपास मंडराने लगा | 

यह देख बर्बरीक ने कहा कि हे ब्राह्मण देव कृपया पत्ती पर से अपना पाँव हटा लीजिये वार्ना यह बाण आपका पैर भी भेद देगा | यह सुन जैसे ही उन्होंने पत्ती पर से पैर हटाया तुरंत ही बाण ने उसे भेद दिया |

यह सब देख कृष्ण समझ गए कि अगर बर्बरीक युद्ध में लड़ेगा तो निश्चित ही युद्ध का परिणाम बदल जायेगा, इसलिए श्री कृष्ण ने युक्ति बनाई और बर्बरीक से कहा कि यदि तुम इतने बड़े क्षत्रिय योद्धा हो तो क्या जो भी कुछ मैं मांगू वो तुम मुझे दान में दोगे !

यह सुन बर्बरीक ने कहा कि जो भी उनके बस में होगा वह दान दे देंगे | बस फिर क्या था ब्राह्मण(श्री कृष्ण) ने दान में उनका शीश(सर) मांग लिया | 

यह सुनकर बर्बरीक सोच में पड़ गए और समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है और ब्राह्मण देव से विनती की कि हे प्रभु! मैं अपना शीश आपको दान तो दे दूंगा पर आप हैं कौन ? मुझे अपने असली रूप से परिचित करवाइये | 

यह सुन श्री कृष्ण अपने असल रूप में प्रकट हो गए और बर्बरीक से कहा कि पुत्र मैं जानता हूँ कि इन तीनों लोकों में तुम से बड़ा वीर और दानी क्षत्रिय और कोई नहीं है और अगर तुम अपनी माता को दिए वचन के अनुसार हारे हुए पक्ष की तरफ से लड़ोगे तो सब कुछ नष्ट हो जायेगा इसलिए में तुम्हारे शीश को दान में माँगता हूँ |

यह सुन बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु मैं आप की आज्ञा का पालन अवश्य करूँगा पर मेरी भी एक इच्छा है कि मैं महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहता हूँ | यह कहकर बर्बरीक ने अपने तीर से एक क्षण में ही अपना शीश अपने धड़ से अलग कर दिया |

यह देख श्री कृष्ण ने बर्बरीक का सर अमृत से धो कर अजर अमर बना दिया और उस से युद्धभूमि का पूजन करने के बाद उसे पास की ही सबसे ऊँची पहाड़ी पर रख दिया ताकि वह पूरा महाभारत का युद्ध देख सकें |

खाटू श्याम जी का धड़ 


अब आपको यह तो पता हो गया कि खाटू श्याम बाबा का शीश खाटू में है इसलिए यह जगह खाटू श्याम नाम से प्रसिद्ध है पर क्या आप जानते हैं कि खाटू श्याम जी का धड़ कहाँ है | 

दरअसल खाटू श्याम जी अथवा बर्बरीक के धड़ की पूजा हरयाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गाँव में होती है जिसका नाम स्याहड़वा है | 

महाभारत युद्ध का सबसे महान योद्धा 


जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों को घमंड होने लगा कि उनसे बड़ा वीर और कोई नहीं है और यह युद्ध उन्ही की वजह से जीता जाया जा सका | इस बात को लेकर सब में बहस छिड़ गयी और सभी श्री कृष्ण के पास पहुंचे और उनसे पुछा कि युद्ध का सबसे महान योद्धा कौन था ?

श्री कृष्ण ने कहा कि इसका जवाब उनके पास नहीं है क्यूंकि वह स्वयं भी युद्ध में अर्जुन के सारथी थे तो सब कैसे लड़ रहे थे इस पर वे गौर नहीं कर पाए | परन्तु उन्होने कहा कि बर्बरीक का शीश मैंने सबसे ऊँची पहाड़ी पर रखा था तो उसे जरूर पता होगा कि सबसे ज्यादा वीरता से कौन लड़ा था | 

सभी लोग बर्बरीक के शीश के पास पहुंचे और पुछा कि इस युद्ध में सबसे ज्यादा वीरता से कौन लड़ा | 

इस पर बर्बरीक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि मुझे तो बस यही दिखा कि श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र पूरे मैदान में घूम रहा है और सभी पापियों का विनाश कर रहा है और माँ काली उन सभी के रक्त का सेवन कर रही हैं | 

यह सब सुन सभी पांडव समझ गए कि जो किया वह श्री कृष्ण ने ही किया वह सब तो सिर्फ साधन मात्र थे |

यह सब सुनकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि मैंने तुम से तुम्हारा शीश माँगा जो तुमने बिना संकोच के मुझे दे दिया |अब तुम जो भी वरदान मांगना चाहते हो वो मुझसे मांग सकते हो मैं तुम्हें जरूर दूंगा | 

यह सुन बर्बरीक ने श्री कृष्ण से उनका साँवला रंग और उनके जैसा कोमल हृदय माँगा | बर्बरीक की बात से खुश होकर श्री कृष्ण ने उन्हें अपना सांवला रूप व अपनी 16 कलाओं को प्रदान किया और वरदान दिया कि कलयुग में बर्बरीक को उनके नाम 'श्याम' से ही पूजा जायेगा और वह अपनी माँ को दिया वचन कलयुग में भी निभाएंगे |

इसलिए यह मान्यता है कि इस कलयुग में जो भी खाटू श्याम बाबा की सच्चे मन से आराधना करता है, बाबा उसका साथ कभी नहीं छोड़ते और उसे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है |

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