एक बार की बात है एक जंगल में बंदरों की एक टोली रहा करती थी |
इसी टोली में एक डुग्गु नाम का चालाक बन्दर रहता था | डुग्गु काफी जिज्ञासु बन्दर था और नए-नए प्रयोग करना उसकी आदत थी |
अपनी इसी जिज्ञासा के चलते डुग्गु अन्य बंदरों की अपेक्षागत बहुत ही तेज-तर्रार था और तरह-तरह से कलमंडी खा कर पेड़ों पर करतब भी दिखाया करता था |
अपनी काबिलियत के चलते डुग्गु बंदर किसी और को अपने सामने गिनता तक नहीं था और अपनी ही मर्जी से सभी काम करता था, उसे जिस भी काम को करने के लिए मना किया जाता उसे तो वह जरूर ही करता था |
एक दिन उसके मन में कुछ नई खोज करने की जिज्ञासा उठी इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना वह जंगल के दूसरे छोर पर जाकर नई बस्ती या कुछ जलस्रोत आदि की खोज करे | इसी जिज्ञासा के साथ वह उस जंगल में और भीतर की ओर जाने लगा |
डुग्गु को जंगल के भीतर की ओर जाते देख उसके मित्रों ने उसे आगाह किया कि बड़े बंदरों ने वहाँ जाने से मना करा है परन्तु डुग्गु उनकी बातों को अनसुना कर के जंगल के और भीतर जाता गया |
यह सब देख कर डुग्गु के मित्र बड़े बंदरों के पास पहुंचे और उनको सारी बात बताई जिसको सुनकर वह सभी डुग्गु के पीछे-पीछे निकल पड़े |
अब डुग्गु जैसे ही थोड़ा आगे पहुंचा उसने देखा कि उनकी बस्ती की अपेक्षागत अंदर के जंगल में ज्यादा पेड़-पौधे हैं |
उसने सोचा कि उसके साथी और बड़े-बुजुर्ग तो कुएँ के मेंढक ही रहेंगे |
अरे! दुनिया में कितना कुछ है मगर इन्हें तो बस एक बस्ती तक ही सीमित रहना है |
डुग्गु सोचता जा रहा था कि अब वह अपने कुछ मित्रों को यहाँ पर लाएगा और एक नई बस्ती बनाएगा और उसका सरदार भी बनेगा |
बंदर यह सब सोचते हुए आगे ही बढ़ रहा था कि उसे अपने आस-पास एक हरे फल की बेल दिखाई दी |
जब बंदर ने अपने चारों ओर नजर घुमाई तो देखा कि यह मनमोहक फल तो हर जगह मौजूद है |
अब क्या था, जिज्ञासु बंदर ने वह फल उठा लिया और उसे खाने लगा |
जैसे ही बंदर ने उस फल को मुँह में रखा उस के मुँह में चाशनी सी घुल गई , वह उमंग से झूमने लग गया, उसने सोचा कि अब वह वापस कभी उस बस्ती में नहीं जाएगा और अपना जीवन इसी जगह इन मीठे-मीठे फलों को खाने में बिताएगा |
डुग्गु बंदर यह सब सोच ही रहा था कि उसके कंठ में अजीब-सी कड़वाहट शुरू हो गई , देखते-ही-देखते उसे बेहोशी-सी महसूस होने लगी और वह बेहोश हो गया |
अब डुग्गु के मित्र जो उसके पीछे-पीछे आ रहे थे वहां पहुंचे तो उन्होंने ने भी उस फल को देखा और खाने को हुए लेकिन उन सभी के साथ चल रहे कुछ बड़े बंदरों ने बाकी छोटे बंदरों से उस फल को खाने से मना कर दिया |
बड़े बंदर जानते थे कि यह एक नशीला फल है और इस से जानवर बेहोश हो जाते हैं |
थोड़ा आगे चलने पर उन्हें जब डुग्गु बंदर दिखाई दिया तो वह समझ गए कि इसने यह फल खा लिया है और बेहोश हो गया है |
अब सभी बंदर डुग्गु को वापस बस्ती में ले आये और उसका उपचार किया जिस से डुग्गु बंदर ठीक हो गया |
ठीक होने के बाद डुग्गु बंदर ने सभी बड़े बंदरों एवं अपने मित्रों से माफ़ी माँगी कि उसने उनकी बात नहीं मानी और मुसीबत में फस गया |
अब डुग्गु बंदर ने यह प्रण लिया कि अब वह कोई भी कार्य करने से पहले अपने बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करेगा |
शिक्षा- बड़े लोगों से मार्गदर्शन लेना जीवन में बहुत जरुरी होता है |
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