Monday, June 5, 2023

The Hare on the moon story in hindi | चाँद पर खरगोश

कुछ हजारों साल पहले एक जंगल में चार दोस्त रहते थे - खरगोश, गीदड़, बन्दर और हाथी | 

यह सभी जब बहुत ही छोटे थे तभी से इन सब की दोस्ती हो गयी थी और यह सभी एक-दूसरे को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाते थे |

चाँद पर खरगोश

एक दिन इंद्रदेव ने सोचा कि यह सभी इतना मिलजुलकर रहते हैं तो क्यों ना इन सब की परीक्षा ली जाए और देखा जाए कि कहीं किसी के मन में कोई खोट तो नहीं |

परीक्षा लेने के लिए इंद्रदेव इन सभी के पास एक साधु का वेश बनाकर पहुंचते हैं |

इंद्रदेव चारों से कहते हैं कि जो भी उन्हें सबसे बड़ा दान अर्थात महादान देगा उसे वह उसकी कोई भी एक इच्छा पूरी कर देंगे |

यह सुन चारों कुछ न कुछ ढूँढने लग जाते हैं जो वो साधु को दान दे सकें और महादानी बन सकें | 

सबसे पहले गीदड़ एक जानवर का मांस का टुकड़ा लेकर आता है, वह सोचता है कि अगर साधु भूखे होंगे और उन्हें कुछ खाने के लिए मिल जाए तो इस से बेहतर और क्या हो सकता है | वैसे भी भूखे को खाना देना सबसे बड़ा दान माना जाता है | 

बन्दर आसपास के आम के पेड़ों पर जाकर मीठे और रसीले आम तोड़ कर ले आता है, वह सोचता है की वैसे भी गंगा दसहरा का पर्व आ रहा है तो ऐसे में रसीले एवं मीठे आम का दान करना श्रेष्ठ होगा |

अब हाथी की बारी थी, उसने सोचा कि क्यों ना साधु के लिए बांस तोड़ कर ले जाऊं, वह उसका घर बनाकर उसमें रह लेंगे |

खरगोश बेचारा अबतक यही सोच रहा था कि वह क्या दान कर सकता है | 

उसने सोचा कि उसका तो इस धरती पर कुछ भी नहीं, तो अगर वह धरती माँ से ही कोई चीज लेकर उसे दान में देगा तो यह दान उसका कैसे हुआ |

बहुत विचार करने के बाद वह साधु के पास गया और बोला कि मैं अपने आप को दान में देना चाहूंगा | 

साधु अर्थात इंद्रदेव खरगोश की यह बात सुनकर एकदम चौंक गए और इसका कारण पूछने लगे |

खरगोश ने कहा कि महाराज, हम सभी इस धरती पर है वो धरती माँ की कृपा से ही हैं | हमारा तो इस धरती पर कुछ है ही नहीं और तो और यह शरीर हवा,पानी,आग,मिटटी और आकाश जैसे तत्वों से बना है जो धरती माँ की ही देन है |

अगर में आपके लिए कोई खाने,पीने अथवा रहने की वस्तु भी ले आऊं तो वह मेरी कहाँ हुईं, वह तो धरती माँ की होंगी |

हम सभी तो बस धरती की वस्तुओं को भोगते हैं, अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए |

जो वाकई में मेरा है वो इस धरती पर मेरा अस्तित्व है, वो ही मैं आपको दान में देता हूँ | 

खरगोश के यह कहते ही साधु ने तुरंत आग प्रजवलित कर दी और खरगोश से उस में कूदने के लिए कहा |

खरगोश आग में कूदता हुआ !

खरगोश को पहले तो थोड़ा डर लगा लेकिन अपने दान के वचन को निभाने के लिए वह आंखें बंद करके उस आग में कूंद गया |

खरगोश के आग में कूंदते ही इंद्रा देव साधु के वेश में से निकलकर अपने असली स्वरुप में आ गए |

इधर खरगोश आग में तो कूंद गया लेकिन जला ही नहीं |

इंद्रदेव ने खरगोश को आग में से बाहर निकाला और जैसे ही उसने इंद्रा देव को देखा उसने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया | 

इंद्रदेव ने खरगोश के दान को महादान माना और बताया कि वह तो उन सभी की परीक्षा लेने आये थे |

उन्होंने खरगोश से अपनी कोई भी इच्छा जाहिर करने के लिए कहा |

यह सुन खरगोश ने फिर दोहराया कि जब धरती पर उसका कुछ है ही नहीं तो वह इच्छा जाहिर कर के भी क्या माँगे | 

उसे भोजन-पानी और रहने के लिए मिल ही जाता है तो और क्या चाहिए |

राजपाट लेकर या शक्तिशाली बनकर या अमर-अजर होकर भी तो उसे धरती की वस्तुओं को ही भोगना है | 

यह सुन इंद्रदेव अच्चम्भित रह गए, उन्होंने कहा कि ऐसे बात तो उन्होंने आज तक किसी भी मनुष्य के मुख से भी नहीं सुनी | 

उन्होनें खरगोश से कहा कि उसके इस दान को दुनिया हमेशा याद रखे इसलिए वह उसकी छाप चाँद पर बना रहे हैं | 

अब से धरती पर से जो भी प्राणी चाँद को देखेगा उसे उसमें खरगोश की ही छवि दिखेगी |

यह कहकर इंद्रदेव उस खरगोश को अपने साथ इंद्रलोक लेकर चले गए |

कुछ मान्यताओं के अनुसार चाँद पर जो निशान हैं वो दरसल इसी खरगोश की छाप के निशान हैं | 

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