एक बार की बात है, एक गांव में एक ईमानदार लकड़हारा रहा करता था | वह रोज जंगल में जाकर सूखे पेड़ ढूँढता और उनकी लकड़ी काटता और उस से मिले पैसों से अपने घर का खर्चा चलाता |
एक बार वह पूरे जंगल में खूब घूमा लेकिन उसे सूखा हुआ पेड़ कहीं भी नहीं मिला, चलते-चलते उसका गला भी सूख गया था तो वह एक तालाब के पास जाकर पानी पीने लग गया |
जब वह पानी पी ही रहा था तो उसकी नजर तालाब के दूसरी तरफ के एक सूखे पेड़ पर पड़ी और वह पानी पीने के तुरंत बाद तालाब के दूसरी ओर जाकर उस पेड़ पर चढ़ गया व उसकी सूखी हुई टहनियाँ काटने लगा |
उसने पेड़ बस काटना शुरू किया ही था कि उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से फिसलकर उस तालाब में जा गिरी |
चूँकि तालाब बहुत ही गहरा था तो उसकी सतह पर जाकर कुल्हाड़ी ढूँढना काफी मुश्किल था इसलिए वह निराश होकर रोने लगा |
उस पर बस एक यही कुल्हाड़ी थी जिस से वह रोज अपनी जरुरत के हिसाब से लकड़ी काटकर बाजार ले जाता और घर का खर्चा चलाता था |
उसको रोता देख उस तालाब में से एक देवी प्रकट होती हैं और लकड़हारे के रोने का कारण पूछती हैं |
लकड़हारा उन्हें बताता है कि कैसे उसकी वह इकलौती कुल्हाड़ी उसके हाथ से फिसलकर पानी में गिर गई और उसे अब नहीं पता कि अब वह कैसे अपना गुजारा करेगा |
उसकी यह बात सुन वह देवी उस से रोने के लिए मना करती हैं और कहती हैं कि वह उसकी कुहाड़ी तालाब में से खोजकर लाएंगी |
यह कहकर वह तालाब में अंदर चली जाती हैं और कुछ देर बाद एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर वापस आती है और लकड़हारे से पूछती हैं कि क्या यही उसकी कुल्हाड़ी है ?
लकड़हारा साफ़ मना कर देता है कि यह तो उसकी कुल्हाड़ी नहीं है |
यह सुन वह देवी वापस तालाब के अंदर जाती हैं और इस बार चाँदी की कुल्हाड़ी अपने साथ लेकर आती हैं व लकड़हारे से फिर वही सवाल पूछती हैं कि क्या यह ही उसकी कुल्हाड़ी है ?
लकड़हारा साफ़ मना कर देता है कि यह भी उसकी कुल्हाड़ी नहीं है बल्कि उसकी कुल्हाड़ी तो बस मामूली सी ही कुल्हाड़ी है |
अब देवी तीसरी बार उस तालाब के अंदर जाती हैं और लकड़हारे की असली कुल्हाड़ी लेकर आती हैं और पूछती हैं कि कहीं यह ही तो उसकी कुल्हाड़ी नहीं है ?
लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी पहचान लेता है और देवी का शुक्रिया अदा करता है |
लकड़हारे की ईमानदारी देखकर देवी बहुत ही प्रसन्न होती हैं और उसे वह चाँदी और सोने की कुल्हाड़ी भी दे देती हैं और उस से कहती हैं कि यह उसकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का इनाम है और वह वापस तालाब में चली जाती हैं |
लकड़हारा अब उस सूखे पेड़ की टहनियाँ काट बाजार में जाकर बेच देता है और कुछ पैसों से अपने घर के लिए मिठाई भी ले जाता है व अपनी पत्नी और बच्चों को उस सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी को दिखाता है |
लकड़हारे की पूरी बात सुनकर और सोने-चाँदी की कुल्हाडी देख उसकी पत्नी और बच्चे काफी खुश होते हैं और उत्सव करते हैं |
लकड़हारे को उत्सव मनाता देख उसका पडोसी उसके घर में झांककर सब देख-सुन लेता है और युक्ति बनाता है कि अगले दिन वह भी उसी तालाब के पास जाकर पेड़ काटने के बहाने से अपनी कुल्हाड़ी तालाब में गिरा देगा और बदले में सोने की कुल्हाड़ी ले आएगा |
पडोसी सुबह उठते ही जंगल की ओर चल देता है और तालाब के पास के ही एक हरे-भरे पेड़ पर अपने द्वारा लायी हुई पुरानी-सी कुल्हाड़ी से वार करने लगता है |
पेड़ पर वार करते-करते वह अपनी उस कुल्हाड़ी को जान-भूझकर तालाब के पानी में गिरा देता है और झूठमूठ का रोने लगता है |
उसे रोता देख तालाब में से वापस से देवी प्रकट होती हैं और उस के रोने का कारण पूछती हैं |
पडोसी बताता है कि जब वह पेड़ काट रहा था तो उसकी कुल्हाड़ी पानी में गिर गयी |
यह सुन देवी तुरंत तालाब के अंदर जाती हैं और एक सोने की कुल्हाड़ी वापस लेकर आ जाती हैं और पूछती हैं कि क्या यह ही उसकी कुल्हाड़ी है |
लालची होने के कारण पडोसी उस सोने की कुल्हाड़ी को ही अपनी कुल्हाड़ी बताता है और देवी से उसे मांगता है |
देवी गुस्से से आगबबूला हो जाती हैं और उस पडोसी से कहती हैं कि वह जानती हैं यह सोने की कुल्हाड़ी उसकी नहीं है और उसके मन में खोट है |
वह उस को बताती हैं कि वह जंगल की देवी हैं और उन्होनें उस लकड़हारे को उसकी ईमानदारी की वजह से ही सोना और चाँदी की कुल्हाड़ी दी थीं, वह कभी भी हरे-भरे पेड़ों को नहीं काटता था बल्कि सूखे हुए पेड़ों को ही काटता था |
वह चाहता तो एक बार में सारी लकड़ी काटकर और उसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकता था लेकिन संयम होने के कारण वह हमेशा अपनी आवश्यकता अनुसार ही लकड़ी ले जाता था |
और दूसरी तरफ पडोसी ने एक हरे-भरे पेड़ को सिर्फ अपने लालच के चलते नुकसान पहुंचाया |
यह सब कह कर देवी उसे वह सोने की कुल्हाड़ी दिए बिना ही वापस पानी के अंदर चली जाती हैं |
पडोसी शर्मसार होकर वापस अपने घर लौट जाता है |
शिक्षा- हमें जीवन में संयम रखना चाहिए व कभी भी लालच नहीं करना चाहिए |
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