एक गांव था ढ़ोलकपुर, जहाँ एक यतीश नाम का पुजारी रहा करता था |
वह गांव के मंदिर में और आस-पास के घरों में पूजा-पाठ कराकर जो उसे बचता उस से ही अपना जीवन-यापन करता था |
वह गांव के मंदिर में और आस-पास के घरों में पूजा-पाठ कराकर जो उसे बचता उस से ही अपना जीवन-यापन करता था |
पुजारी पर्यावरण-प्रेमी भी था इसलिए भोजन बनाते समय जो सब्जी के छिलके या कुछ अन्न बच जाता उसे अपने घर के पीछे एक गड्ढे में डाल देता था ताकि वह वापस मिट्टी बन जाए या कोई जानवर या पक्षी उसे खा जाये |
पुजारी ने गांव के मंदिर में ही घर बना रखा था जिस के पीछे एक मोटा चूहा रहता था |
वह चूहा रोज पुजारी द्वारा गड्ढे में डाली गयी खाद्य वस्तु को चट कर जाता और तो और मंदिर में रखा हुआ प्रसाद भी हजम कर जाता |
रोज-रोज प्रसाद खाने की इसी आदत की वजह से पुजारी उस चूहे से काफी दुखी हो गया और चूहे को प्रसाद के पास तक जाने से रोकने के लिए कई प्रयत्न करने लग गया |
उसने मंदिर की लकड़ी की किवाड़ की जगह लोहे की किवाड़ लगवाई, भोग रखने का स्थान बदला लेकिन फिर भी वह चूहा कहीं न कहीं से मंदिर के भीतर प्रवेश कर के भोग खा जाता था |
एक दिन पुजारी ने सोचा कि शायद इस चूहे को ज्यादा भूख लगती होगी इसलिए उस ने कुछ-एक दिन उस गड्ढे में कुछ ज्यादा खाना भी रख दिया लेकिन चूहा अपनी आदत से मजबूर उसे भी चट कर गया और भोग भी खा लिया |
एक दिन उस गांव में एक सन्यासी आये और उन्होंने गांव के मंदिर में ही ठहरने का फैसला करा |
पूरे दिन में जो भी उन्हें अनाज या रोटी आदि जो भी कुछ मिला वह सब स्वीकार कर वह शाम के विश्राम के लिए मंदिर आ गए और पुजारी के साथ जलपान किया |
जलपान करने के बाद सन्यासी ने देखा कि पुजारी का मन कुछ चिंतित-सा प्रतीत हो रहा है तो उन्होंने पुजारी से इस चिंता का कारण पूछा जिस पर पुजारी ने सन्यासी को चूहे के बारे में सारी बातें बताई |
सन्यासी ने पुजारी की मदद करने की ठानी और एक युक्ति बनाई |
अब सन्यासी को जो कुछ भी भिक्षा में मिलता वह उसका एक भाग उस चूहे के लिए निकाल देता और पुजारी से भी ऐसा ही करने के लिए कहता | साथ-ही-साथ अब उन्होंने भोग भी ज्यादा रखना शुरू कर दिया |
अब क्या था, देखते-ही-देखते वह चूहा अब और भी मोटा हो गया और एक दिन ऐसा आया कि जिस दराज से वह अंदर जाता वह उसके मोटापे के कारण उस के लिए छोटी पड़ने लग गयी |
अब वह चूहा बस पुजारी और सन्यासी का रखा भोजन ही खा पाता जिसे पुजारी और सन्यासी ने और बढ़ा दिया |
अब एक दिन ऐसा आया कि चूहा बस बैठ के खाता ही रहता और आलसी भी बन गया और अपने मोटापे के कारण बिल और गड्ढे से भी बाहर ना निकलता |
बस फिर क्या था पुजारी और सन्यासी ने गड्ढे में भोजन डालना बंद कर दिया और वह चूहा अब भूख से कमजोर हो गया और एक दिन एक बिल्ली ने उसका शिकार कर लिया |
शिक्षा- हमें जितना ईश्वर ने दिया है उस में ही संतुष्ट रहना चाहिए और ज़्यादा लालच नहीं करना चाहिए नहीं तो अंजाम बुरा होता है |
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