एक बार की बात है एक पेड़ पर एक कौवा अपना घोंसला बनाकर रहा करता था |
उस का घोंसला बहुत ही सुन्दर था जिसमें वह अपने परिवार के साथ शांति से रहा करता था | इसी पेड़ पर एक बंदर भी रहता था जो इस पेड़ की एक डाल से दूसरी डाल पर उछलता-कूदता रहता था |
एक दिन बहुत ही मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी |
अब कौवे के पास तो उसका खुद का घोंसला था वह बिना भीगे आराम से बैठा था लेकिन बन्दर का कोई स्थायी घर नहीं था जिसके कारण वह बुरी तरह से भीग चुका था |
उसे बहुत ही बुरा लग रहा था कि कौवे की तरह उसने अपना खुद का घर नहीं बनाया | बारिश के पानी से भीग जाने के कारण वह ठण्ड से कंपकंपा भी रहा था |
जब कौवे ने उस बन्दर को इस स्थिति में देखा तो वह बन्दर से बोला कि आज उसे जो अफ़सोस हो रहा है उस में उसी की गलती है |
वह तो इतना बड़ा और ताकतवर है फिर भी अपना खुद का घर नहीं बना सका और उसने तिनका-तिनका जमा कर के अपना एक सुरक्षित घोंसला बनाया जिस के कारण वह इतनी तेज बारिश में भी भीगा नहीं है |
बन्दर ने सिर्फ इधर-उधर कूदने में अपना समय जाया किया, इस समय में वह बहुत अच्छा घर भी बना सकता था |
बन्दर बस यह सब चुप-चाप सुन रहा था लेकिन कौवा नॉनस्टॉप बस बोले ही जा रहा था |
जब बन्दर पर और सुना न गया तो उसने पेड़ की एक डाल तोड़कर कौवे के उस घोसले में मार दी |
इतनी मेहनत से बनाया हुआ कौवे का घोंसला बस एक सेकंड में ही उजड़ गया |
अब कौवा भी बारिश में भीग रहा था |
बन्दर तो बेवक़ूफ़ था इसलिए अपना घर नहीं बना पाया मगर कौवे ने अपनी बेवकूफी के कारण अपना खुद की मेहनत से बनाया घर उजाड़ लिया |
शिक्षा-किसी दूसरे के फटे में टाँग नहीं अढानी चाहिए | (हमें लोगों के व्यक्तिगत मामलो से दूर ही रहना चाहिए या किसी को भी मुफ्त की सलाह नहीं देनी चाहिए | )
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